Monday, September 29, 2025

।। साक्ष्य ।।


खिड़कियों से झांकते

रोडलाईट के मद्धम उजाले में,

बनती-बिगड़ती अपरिचित परछाइयों में,

रात मेरे साथ

एक धीमी साँस भर रही है...

क्षणिक प्रकाश,

अपूर्ण अंधकार,

एक अधूरा संतुलन

प्रतिक्षण बनता और बिगड़ता हुआ—

याद दिलाता है

कि स्थिरता

कोरी कल्पना है...


उनींदी आँखों में

कल के सपनों की लौ सुलगती है

उम्मीद धुंआ बनकर छा रही है...

अवचेतन और जागृति के संगम पर—

मन पूछता है

क्या अधूरे स्वप्नों का साक्ष्य है नींद ?...




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।। साक्ष्य ।।

खिड़कियों से झांकते रोडलाईट के मद्धम उजाले में, बनती-बिगड़ती अपरिचित परछाइयों में, रात मेरे साथ एक धीमी साँस भर रही है... क्षणिक प्रकाश, अपू...