तुम बनो जो स्नेह
मैं दीया बनकर जल उठूंगा
अँधेरों में मुस्कुराकर
भोर में फिर खिल उठूंगा
तुम अगर मिलने को कह दो
सब दुखों को दूर कर
खुशी में फिर झूम कर,,
मैं जी उठूँगा...
तुम बनो जो स्नेह
तो मैं दीया बनकर जल उठूंगा
तुम अगर हाथों से छू दो
उलझनों को दूर कर
प्रेम को महसूस कर ,,
मैं हँस पडूँगा...
तुम बनो जो स्नेह
तो मैं दीया बनकर जल उठूंगा
तुम अगर चलने को कह दो
बन्धनों को तोड़कर
इरादे मजबूत कर ,,
मैं चल पडूँगा...
तुम बनो जो स्नेह
Tuesday, February 22, 2022
Monday, February 14, 2022
।। प्रश्न ।।
कितनी बातें लिखने को है
कितना कोरा वह दर्पण हैकितने शब्दों की कविता है
कितने भावों का अर्पण है
कितना जीवन अभिव्यक्ति युक्त
कितना अब मौन अभीप्सित है
कितना जीवन जीने को है
कितना अब मृत्यु प्रतीक्षित है
कितना जग में मिथ्या पूजित
कितना वह सत्य पराश्रित है
कितना स्व का अपमान हुआ
कितना अभिमान सुरक्षित है
कितना मन को बाँधा हमने
कितना अन्तः आलोकित है
कितनी इच्छा पूरी कर ली
कितना विराग अब जीवित है
कितनी स्मृति में उलझन है
कितना बाधाओं से डर है
कितनी कंटकमय राहें हैं
कितना दृढ़ मन चलने को है
कितना कंपित दीपक जैसा
कितनी अविकल संरचना है
कितना ऊँचा सपना इसका
कितना वैरागी चाल चलन है
कितनी इसमे है गतिमयता
कितना प्रतिपल परिवर्तन है
कितना जड़ता में बंधा हुआ
कितना यह जीवन स्थिर है
©timit_pathil
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