Monday, June 7, 2021

।। गीली राख ।।

उम्र का कोई हिस्सा
टूटकर बिखर गया है
नींद में चुभते हैं
उसके टुकड़े
रिसता रहता है लहू
जिसमें लिपटकर
स्वप्न गीले हो गए हैं

सर्द रातों में मैंने
गीले स्वप्न जलाए
चारो तरफ केवल
धुँआ ही धुँआ
जल गया सब कुछ
बची हुई राख
आँसुओं में सनी हुई
गीली हो गई है

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