Sunday, November 1, 2020

।।अस्तित्व।।

समुद्र में मिलकर समुद्र बन जाने की बात नहीं.. उसे अपना अस्तित्व खो देने का डर है.. नदी को सिर्फ नदी बने रहना अच्छा लगता .. वह जानती है वापस लौट पानेका कोई रास्ता नही.. जहाँ से चली .. समय के इतिहास में जब कभी चलने का क्षण अंकित किया.. फिर उस तक वापस पहुँच नहीं सकती .. यह असम्भव ही तो है .. लेकिन जिन रास्तों को बनाया.. जिन पहाड़ो से निकली.. जिन गाँवो को जीवन दिया.. जिन जंगलों में से गुनगुनाते हुए गुज़री.. जिन घुमावदार रास्तों में उलझी.. कभी उन्हें मुड़ कर जब भी देखती नदी .. समुद्र में मिलने से डर लगता उसे .. क्योंकि वह समुद नहीं बनना चाहती .. वह नदी बने रहना चाहती है.. ताकि उसकी गोद में खेलने वाले छोटे-छोटे बच्चे जब उसके छोर पर पहुँचे तो उसे पहचान कर उसका नाम लेकर बुलायें.. समुद के प्रभाव में खो गई नदी को भूले नहीं..
                                               वह अपने अंतिम प्रसार मे लिपटकर जमीन से बढ़ती जाती हर तरफ दिशाहीन सी और इस तरह वो रोक लेना चाहती है ख़ुद को समुद्र में मिलने से .. वहाँ भी वह किसी डेल्टा के रूप में भौगोलिक नामकरण से दूर सिर्फ नदी बने रहना चाहती है.. देखना कभी नदी अपने रास्तों के पहाड़ के ढलान पर.. हर मोड़.. हर एक गाँव के पास समुद्र में मिलने के भय से जब कांपती तब उसकी उठती लहरों में सुनना वह धीरे से कहती सिर्फ नदी बने रहना मुझे.. सिर्फ नदी ..

                                                         ©timitpathil


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