सर्द दिनों की धूप
पहाड़ की ढलान पर उतरते हुए
फूल की ख़ुशबू जैसे
जिसे सिर्फ़ महसूस कर सकूँ ऐसे
अदृष्ट अप्राप्य तुम
तुम्हारे खयालों के साथ
कहीं खो जाने के लिए
मुझे अकेला
छोड़ क्यूँ नहीं देती..
कुछ ख़्वाब तक है ये जिंदगी कभी आस्था का दिया लिए कभी नींद का सौदा किये कभी व्यस्तता में उलझ गए कभी फ़ुरसतों में ही जी लिए अपनी अलग द...
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