बाद तुम्हारे
जीवन
कुछ यादें
कुछ अनसुनी फ़रियादें
ज़िम्मेदारियों की इक गठरी
हर दिन उदास दुपहरी
शाम में लोगों का जमघट
रात फिर खाने का झंझट
नींद तकिए तले रहती
सुबह अलसाई आँखें खुलती
फिर शाम तक थके हारे
खुली आँखों के सपने सारे
अलाव के आँच में
कभी राख कभी धुआँ बनते
बाद तुम्हारे
जीवन
जैसे इंतज़ार है
मृत्यु की मिल्कियत में
सबकुछ थमा देने तक...
©timitpathil
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