अक्सर,
चिंतन के प्रवाह में ही
व्यथाओं को बहते देखा है ।
विश्वास की छाँह में ही
आरोपों को सहते देखा है ।
भीड़ के उत्त्रास में ही
एकांत को बढ़ते देखा है ।
दिवस के दोपहर में ही
सूरज को ढलते देखा है ।।
©timit_pathil
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