Sunday, November 15, 2020

।। अक्सर ही ।।

अक्सर,
चिंतन के प्रवाह में ही
व्यथाओं को बहते देखा है ।

विश्वास की छाँह में ही
आरोपों को सहते देखा है ।

भीड़ के उत्त्रास में ही
एकांत को बढ़ते देखा है ।

दिवस के दोपहर में ही
सूरज को ढलते देखा है ।।


                                                            ©timit_pathil

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