सोचता हूँ अक्सर ही कि कभी यूँ ही चुपचाप निकल लूँ अनन्त की तरफ उस यात्रा में जहाँ रास्ते कभी मंजिलों तक नहीं पहुँचते... जहाँ से मुड़कर वापस आने का कोई अवसर नहीं होता है... जहाँ अपने भी कभी न मिल पाने के वादे के साथ अलविदा कहते हैं...
सोचता हूँ अक्सर ही कि कभी यूँ ही चुपचाप तुमको बताए बिना विदा ले लूँ तुमसे और तुम्हारे तकिये तले सहेजकर रख दूँ अनगिनत सवालों को... अनगिनत ख्वाबों को बिखेर दूँ तुम्हारी पलकों पर... बिना बताए ही तुमको चुपके से पकड़ा दूँ अधूरे अफसानों की किताब और निकल लूँ वहाँ जहाँ से वापस आने की उम्मीद किसी को न रहे...
फिर सोचता हूँ अक्सर की जाने से पहले एकबार तुमसे कह दूँ कि अपना ख्याल रखना... मुझे शायद देर हो जाए वापस आने में... शायद बहुत देर...
Wednesday, January 20, 2021
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कुछ ख़्वाब तक है ये जिन्दगी
कुछ ख़्वाब तक है ये जिंदगी कभी आस्था का दिया लिए कभी नींद का सौदा किये कभी व्यस्तता में उलझ गए कभी फ़ुरसतों में ही जी लिए अपनी अलग द...

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जहाँ रहता हूँ मैं.. वहाँ से एक रास्ता जाता है छत पर.. जिससे कोई गया नहीं बहुत दिन हुए... देखा है मैंने छोड़ दिये गए उस रास्ते पर उगने लगे हैं...
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घर से निकलते वक़्त चौखट पर ठिठक गए उसके पाँव याद किया उसने जब वह आयी थी इस चौखट को लाँघकर जिसके परे फिर उसने देखी नहीं दुनिया खेतों के काम प...
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जैसे वक्त ठहर कर ढूंढ़ने लग जाए रास्ता.. जैसे रुक कर लहरें नापने लगें किनारों तक की दूरी.. जैसे रुक गई हो एक उम्र किसी के इंतज़ार में.. वैसे ह...
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