Wednesday, January 20, 2021

सोचता हूँ अक्सर ही कि कभी यूँ ही चुपचाप निकल लूँ अनन्त की तरफ उस यात्रा में जहाँ रास्ते कभी मंजिलों तक नहीं पहुँचते... जहाँ से मुड़कर वापस आने का कोई अवसर नहीं होता है... जहाँ अपने भी कभी न मिल पाने के वादे के साथ अलविदा कहते हैं...
                                          सोचता हूँ अक्सर ही कि कभी यूँ ही चुपचाप तुमको बताए बिना विदा ले लूँ तुमसे और तुम्हारे तकिये तले सहेजकर रख दूँ अनगिनत सवालों को... अनगिनत ख्वाबों को बिखेर दूँ तुम्हारी पलकों पर... बिना बताए ही तुमको चुपके से पकड़ा दूँ अधूरे अफसानों की किताब और निकल लूँ वहाँ जहाँ से वापस आने की उम्मीद किसी को न रहे...
                                          फिर सोचता हूँ अक्सर की जाने से पहले एकबार तुमसे कह दूँ कि अपना ख्याल रखना... मुझे शायद देर हो जाए वापस आने में... शायद बहुत देर... 


                                                             ©timit_pathil

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