Friday, April 22, 2022

कुछ ख़्वाब तक है ये जिन्दगी


कुछ ख़्वाब तक है ये जिंदगी

कभी  आस्था का दिया लिए
कभी  नींद  का  सौदा  किये
कभी व्यस्तता में  उलझ गए
कभी फ़ुरसतों में ही जी लिए

अपनी अलग दिल  की  लगी
कुछ ख़्वाब तक है ये जिंदगी

कभी  रास्तों  से भी बात की
कभी  मंजिलें भी तलाश कीं
कभी  बिन थके हम  सो गए
कभी  रात   भर  जगते   रहे

तारों   के  भीड़  में  चाँद  सी
कुछ ख़्वाब तक है ये जिंदगी

ना   अमरता   की   चाह   है
बस  मृत्यु   तक   ही  राह है
इस   जिंदगी   की  दौड़   में
कहीं  दब  गई  इक  आह है

अपनी कही,  किसने सुनी ?
कुछ  ख़्वाब तक  है जिंदगी...


                                                            @timit_pathil

Tuesday, February 22, 2022

तुम बनो जो स्नेह
मैं दीया बनकर जल उठूंगा
अँधेरों में मुस्कुराकर
भोर में फिर खिल उठूंगा

तुम अगर मिलने को कह दो
सब दुखों को दूर कर
खुशी में फिर झूम कर,,
मैं जी उठूँगा...
तुम बनो जो स्नेह
तो मैं दीया बनकर जल उठूंगा

तुम अगर हाथों से छू दो
उलझनों को दूर कर
प्रेम को महसूस कर ,,
मैं हँस पडूँगा...
तुम बनो जो स्नेह
तो मैं दीया बनकर जल उठूंगा

तुम अगर चलने को कह दो
बन्धनों को तोड़कर
इरादे मजबूत कर ,,
मैं चल पडूँगा...
तुम बनो जो स्नेह
तो मैं दीया बनकर जल उठूंगा
अँधेरों में मुस्कुराकर
भोर में फिर खिल उठूंगा...

 
                                                           ©timit_pathil

Monday, February 14, 2022

।। प्रश्न ।।

कितनी बातें  लिखने को  है
कितना  कोरा वह  दर्पण  है
कितने शब्दों  की कविता है
कितने  भावों का अर्पण  है

कितना जीवन अभिव्यक्ति युक्त
कितना अब  मौन अभीप्सित है
कितना  जीवन   जीने   को   है
कितना  अब  मृत्यु प्रतीक्षित  है

कितना  जग में मिथ्या  पूजित
कितना वह  सत्य  पराश्रित  है
कितना  स्व का अपमान  हुआ
कितना  अभिमान  सुरक्षित  है

कितना  मन  को  बाँधा हमने
कितना  अन्तः  आलोकित है
कितनी  इच्छा  पूरी  कर  ली
कितना विराग अब जीवित है

कितनी  स्मृति  में उलझन है
कितना  बाधाओं  से  डर  है
कितनी   कंटकमय  राहें   हैं
कितना दृढ़ मन चलने को है

कितना  कंपित दीपक  जैसा
कितनी  अविकल संरचना है
कितना  ऊँचा  सपना इसका
कितना वैरागी चाल चलन है

कितनी  इसमे  है  गतिमयता
कितना  प्रतिपल परिवर्तन है
कितना  जड़ता  में बंधा हुआ
कितना  यह  जीवन  स्थिर है
     
                                                            ©timit_pathil

Monday, June 7, 2021

।। गीली राख ।।

उम्र का कोई हिस्सा
टूटकर बिखर गया है
नींद में चुभते हैं
उसके टुकड़े
रिसता रहता है लहू
जिसमें लिपटकर
स्वप्न गीले हो गए हैं

सर्द रातों में मैंने
गीले स्वप्न जलाए
चारो तरफ केवल
धुँआ ही धुँआ
जल गया सब कुछ
बची हुई राख
आँसुओं में सनी हुई
गीली हो गई है

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Thursday, May 13, 2021

।। क्या है जीवन ।।

क्या है जीवन
दुःख भी हंसकर काट लिया
अपनों में खुशियाँ बाँट लिया

क्या है जीवन
गर्म  दिनों में एक  हवा का  ठंडा झोंका
बहती नदिया की लहरों में चलती नौका
हाथ पकड़  बच्चों ने ज्यों जाने से रोका

क्या है जीवन
ढलती शाम सूर्य जाकर पच्छिम में खोया
खेत किनारे पड़ी  खाट पर थककर सोया
ओढ़  रात  की चादर  कोई  छुपकर रोया

क्या है जीवन
बदल रहे मौसम की वो हल्की सी आहट
साथ  चल रहे साथी की छोटी  सी चाहत
दुःख में हाथ  बंटाने से जो मिलती राहत

क्या है जीवन
चौराहों पर जमी भीड़ में बिकती मेहनत
नहीं उतर कर आसमान से आती रहमत
बड़े बड़े महलों पे अब है अनगिन लानत

क्या है जीवन
साथ तुम्हारा और पकड़कर हाथ, गाँव में चलती राहें
साथ  तुम्हारा  और  गोद  में  रखे हुए सर, थामे बाहें
साथ  तुम्हारा और  साथ में ही दिन रात गुजरते जाएं

क्या है जीवन
दुःख भी हंसकर काट लिया
अपनों में खुशियाँ बाँट लिया

                                                            ©timit_pathil

Friday, April 9, 2021

।। वक्त ।।

घर से निकलते वक़्त
चौखट पर
ठिठक गए उसके पाँव
याद किया उसने
जब वह आयी थी
इस चौखट को लाँघकर
जिसके परे फिर उसने देखी नहीं दुनिया
खेतों के काम पर-
कूएँ से पानी भरने भी
जाती थीं घरकी बड़ी बहुएँ
वो घर में सबकी चहेती थी 
हँसी उसके चेहरे पर
सबने हमेशा देखी थी
बस कुछ महीने पहले ही तो
नियति ने जब सजा दिया
उसे वैधव्य के काँटों से
तब घर में उसे 
पहली बार माँगना पड़ा था ठंडा तेल
बच्चे की चोट पर लगाने के लिए
धीरे धीरे सबने छोड़ दिया उसकी बातें सुनना
और तिरस्कृत कर कह दिया
अपनी व्यवस्था करने के लिए

गाँव में पहली बार निकली थी वह
लोगों की बातों में सुना
उसने अपने लिए
झूठी संवेदना
उनकी घूरती आँखों में
देखा उसने तृप्त हो रही वासना
आज फिर..
नम आँखो के पोरों को
आँचल से पोछते हुए
बच्चों की भूख मिटाने के लिए
कोटेदार से माँगा उसने
अपने हिस्से का चावल...

   
                                                            ©timit_pathil

Wednesday, January 27, 2021

।। मैं रुक गया वहाँ ।।

मैं रुक गया वहाँ
जहाँ गांव का आखिरी पेड़ सूखा खड़ा है
जहाँ सीवान का आखिरी खेत बंजर पड़ा है
जहाँ ट्यूबवेल के नहर का आखिरी कुलावा खुलता है
जहाँ से तुम्हारा नाम चीख चीख कर बोलूँ तो भी कोई नहीं सुनने वाला है

मैं रुक गया वहाँ
जहाँ पेड़ों पर फूल नहीं जिम्मेदारियों के फल लगते हैं
जहाँ सड़के किसी मेले में नहीं बाजार के संकरे से गोदाम में जाती हैं
जहाँ पैरों में चप्पल नहीं रिक्शे की पैडिल पहनी जाती है
जहाँ गुब्बारों में भरकर भूख खरीदी और बेची जाती है

मैं रुक गया वहाँ
जहाँ नींद ख्वाबों से सौदा करते करते खुद सो जाती है
जहाँ ख़्वाब किसी इच्छा को सजाता संवारता मार दिया जाता है
जहाँ रात सुकून के जगह को कल की चिंता से भरती है
जहाँ दिन खुशी के जगह को व्यस्तताओं से भर देता है

मैं रुक गया वहाँ
जहाँ एक बाप ठंड से मरी हुई बेटी को गोद में लिए उसका सर चूम रहा है
जहाँ बुझे हुए अलाव के पास कुत्ते के साथ चिथड़ा ओढ़े एक बच्चा सो रहा है
जहाँ बहू सुबह से अपनी सास पे चिल्लाये जा रही कि उसने रात की बची हुई रोटियाँ कयूँ खा ली हैं
जहाँ आदमी काम के बहाने निकल कर खेत के मेड़ पर बैठ ताश खेल रहा है

मैं रुक गया वहाँ...

©timit_pathil

Wednesday, January 20, 2021

सोचता हूँ अक्सर ही कि कभी यूँ ही चुपचाप निकल लूँ अनन्त की तरफ उस यात्रा में जहाँ रास्ते कभी मंजिलों तक नहीं पहुँचते... जहाँ से मुड़कर वापस आने का कोई अवसर नहीं होता है... जहाँ अपने भी कभी न मिल पाने के वादे के साथ अलविदा कहते हैं...
                                          सोचता हूँ अक्सर ही कि कभी यूँ ही चुपचाप तुमको बताए बिना विदा ले लूँ तुमसे और तुम्हारे तकिये तले सहेजकर रख दूँ अनगिनत सवालों को... अनगिनत ख्वाबों को बिखेर दूँ तुम्हारी पलकों पर... बिना बताए ही तुमको चुपके से पकड़ा दूँ अधूरे अफसानों की किताब और निकल लूँ वहाँ जहाँ से वापस आने की उम्मीद किसी को न रहे...
                                          फिर सोचता हूँ अक्सर की जाने से पहले एकबार तुमसे कह दूँ कि अपना ख्याल रखना... मुझे शायद देर हो जाए वापस आने में... शायद बहुत देर... 


                                                             ©timit_pathil

।। चले जाना ।।

किसी ने कहा था 'जाना' सबसे कठिन क्रिया है... फिर भी मेरा ये मानना है किसी के लिये भी जाने के रास्ते खुल रहने चाहिए... उसे अपने स्वार्थ के लिए अपने अपनेपन के नाते अपने खुशी के लिए रोकना उचित नहीं हो सकता... हाँ मैं ये कह सकता हूँ किसी को जाने देना भी सबसे कठिन फैसला हो सकता है... फिर भी किसी के लिए किसी भी चीज के लिए रास्ते बन्द करना उचित नहीं हो सकता... हाँ यहाँ यह विचार किया जा सकता है कि ऐसा कब करना चाहिए... तो मैं यही कहूँगा इसका कोई समय नहीं बस आपको इतनी सहूलियत हमेशा रखनी चाहिए कि सामने वाले को जब जाना हो तो उसके लिए उसे आपसे पूछना या कहना न पड़े... कुछ चीजों को हम एक सुंदर विदा के साथ भी छोड़ सकते.. मुझे लगता है कि एकझटके में खत्म करने के जगह यह ज्यादा अच्छा तरीका है... एक अच्छी याद लिए.. एक अच्छे मोड़ पर... बिना दूरी बढ़े ही दूर हो जाना...
हाँ यह मुझे भी लागता है जाना सबसे कठिन क्रिया है... और किसी को जाने देना सबसे कठिन फैसला...

 
                                                            ©timit_pathil

कुछ ख़्वाब तक है ये जिन्दगी

कुछ ख़्वाब तक है ये जिंदगी कभी  आस्था का दिया लिए कभी  नींद  का  सौदा  किये कभी व्यस्तता में  उलझ गए कभी फ़ुरसतों में ही जी लिए अपनी अलग द...