कभी आस्था का दिया लिए
कभी नींद का सौदा किये
कभी व्यस्तता में उलझ गए
कभी फ़ुरसतों में ही जी लिए
अपनी अलग दिल की लगी
कुछ ख़्वाब तक है ये जिंदगी
कभी रास्तों से भी बात की
कभी मंजिलें भी तलाश कीं
कभी बिन थके हम सो गए
कभी रात भर जगते रहे
तारों के भीड़ में चाँद सी
कुछ ख़्वाब तक है ये जिंदगी
ना अमरता की चाह है
बस मृत्यु तक ही राह है
इस जिंदगी की दौड़ में
कहीं दब गई इक आह है
अपनी कही, किसने सुनी ?
कुछ ख़्वाब तक है जिंदगी...
@timit_pathil